Thursday, September 19, 2024
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जालंधर में श्री सिद्ध बाबा सोढल मेले की धूम, जानिए क्या है ऐतिहासिक महत्त्व

by Doaba News Line

दोआबा न्यूज़लाईन

जालंधर: सोढल मेला जालंधर शहर का एक ऐतिहासिक और धार्मिक मेला है। यह मेला हर साल सितंबर में अनंत चतुर्दशी के दिन आयोजित किया जाता है। सोढल मेला हर साल जालंधर शहर में भादों के महीने शुक्ल पक्ष के 14वें दिन मनाया जाता है। पंजाब के मेलों की सूची में इस मेले का प्रमुख स्थान है। यह मेला हर साल श्री सिद्ध बाबा सोढल को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आयोजित किया जाता है। हर साल देशभर से लाखों श्रद्धालु इस मेले में सोढल बाबा के दर्शनों के लिए दूर-दूर से आते हैं। मेले के दौरान विभिन्न मंडलियों और धार्मिक समितियों द्वारा दिन-रात लंगर लगाया जाता है।

आइए सोढल मंदिर के बारे में विस्तार से जानते हैं। श्री सिद्ध बाबा सोढल जी का मंदिर और यहां स्थित पवित्र तालाब लगभग 200 वर्ष पुराना है। इससे पहले यहां घना जंगल हुआ करता था और अब उस स्थान पर बाबा जी का श्री रूप स्थापित है, जिसे अब मंदिर का रूप दिया गया है। देशभर से अनेकों श्रद्धालुजन अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति और बाबा जी के दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर सिद्ध स्थान के रूप में बहुत ही प्रसिद्ध है। मंदिर के अंदर एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक सरोवर भी है, जहां सोढल बाबा जी की विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है। सरोवर के चारों ओर पक्की सीढ़ीयां बनी हुई हैं तथा मध्य में एक गोल चबूतरे के बीच में सोढल बाबा का नाग स्वरूप है। श्रद्धालु इस पवित्र सरोवर के जल से अपने उपर छिड़काव करते हैं और उस जल को चरणामृत की तरह पीते भी हैं। इस मेले के दौरान लोगों की भीड़ देखने योग्य होती है। लाखों की संख्या में लोग इस मेले में शामिल होते हैं। मेले में आने वाले लोगों की भीड़ मेले के कुछ दिन पहले से लेकर मेले के बाद तक भी बरकरार रहती है।

इस मेले में हर जाति, धर्म व समुदाय के लोग नतमस्तक होते हैं। अपनी मनोकामना के पुरे होने पर लोग गाजों बाजों के साथ बाबा जी के मंदिर में आते हैं और उन्हें भेंट व 14 रोट का प्रसाद चढ़ाते हैं। जिसमें से 7 रोट प्रसाद के रूप में वापस मिल जाता हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस प्रसाद को घर की बेटी तो खा सकती हैं पर दामाद व उसके बच्चो को देना वर्जित होता है। वर्तमान में यह मंदिर पंजाब के जालंधर शहर के सोढल रोड पर स्थित है।

ऐतिहासिक महत्व-

जानकारी के अनुसार बाबा सोढल का जन्म जालंधर शहर में चड्ढा परिवार में हुआ था। सोढल बाबा के साथ कई कहानियां जुड़ी हुई हैं। कहते हैं कि जब सोढल बाबा 4 साल के थे, एक दिन वह अपनी माता जी के साथ तालाब पर गए। माता कपड़े धोने में व्यस्त थी और बाबा जी वहीं उनके पास ही खेल रहे थे। बाबा जी को खेलते-खेलते भूख लग जाती है और वह माता से मट्ठी खाने की जिद्द करने लगते हैं। पर माता काम छोड़कर जाने को तैयार नहीं थे। उनके बार-बार जिद्द करने पर माताजी उन्हें गुस्से में डांट देती है और बुरा-भला बोल देती है। माता जी गुस्से में उन्हें तालाब में गिर जाने को कह देती है जिस पर बाबा जी माता जी से यह बात तीन बार पूछते हैं और फिर तालाब में छलांग लगा देते हैं और मां की आखों से ओझल हो जाते हैं। जिसके बाद उनकी माता विलाप करके रोने लगती है, रोने -तड़पने लग जाती है। फिर सोढल बाबा जी उन्हें दर्शन देते है और भक्ति संदेश देते है। बाबा जी का बचपन का नाम सोडी था। जो कि बाद में बाबा सोढल के नाम पर प्रसिद्ध हुए हैं।

कहा जाता हैं कि यह त्यौहार या मेला महिलाओं के लिए बहुत ही महत्व रखता है। इसलिए वे बाबा सोढल का आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर आती हैं ताकि उनके परिवार में खुशहाली और समृद्धि बनी रहे। वे अपने बच्चों और परिवार के लिए तालाब का पवित्र और उपहार स्वरूप दिया गया पानी आशीर्वाद के रूप में लेकर जाते हैं।

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