सहजधारी सिख पार्टी ने जालंधर के पंजाब प्रेस क्लब में की प्रेस वार्ता
दोआबा न्यूज़लाईन (जालंधर/राजनीतिक)
जालंधर: सहजधारी सिख पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. परमजीत सिंह रानू ने कहा कि संसद के इस संशोधन के उपरांत शिरोमणी कमेटी की अपील को खारिज करते समय 2016 में ही सर्वोच्च न्यायालय ने पार्टी को इस संशोधन कानून के कानूनी महत्त्व को चुनौती देने की विशेष छूट दी थी, जिसके कारण यह चुनौती दी गई थी। उन्होंने बताया कि इस कानून को संसद में लाते समय संसद के नियमों की धज्जियां उड़ाई गईं थी। जिस में बिल पारित करते समय अपेक्षित ‘सब्जेक्ट’ एवं ‘रीज़न (उद्देश्य एवं कारण) संसद को लिखित रूप में बताने आवश्यक होते हैं तथा इस मामले में केवल उद्देश्य’ बताया गया है कि हाई कोर्ट ने कहा था कि कानून में संशोधन केवल संसद के द्वारा हो सकता है परन्तु इस संशोधन की आवश्यकता क्यों है।
इस संबंधी विधेयक में कोई ‘कारण स्पष्ट नहीं किया गया। इस विधेयक को संसद में बिना बहस के ही राज्य सभा में पारित कर दिया गया था, जबकि सहजधारी सिक्खों को 1944 की पार्लियामेंट ने विधिवत विशेष कारणों के चलते ही बहुत सोच-समझ कर यह अधिकार दिया था, जो विगत 60 वर्ष बिना किसी समस्या के समय की कसौटी पर खरा उतरा था।
यह केवल शिरोमणी अकाली दल (बादल) को प्रसत्र करने का एक राजनीतिक उपाय था। यह भी नहीं सोचा गया कि केन्द्र सरकार द्वारा 2003 में भी पहले इसी प्रकार की एक कोशिश करके अधिसूचना द्वारा संशोधन करते हुए 1944 से मतदान के अधिकार का इस्तेमाल करने का अधिकार दिया गया था, जिसे हाई कोर्ट ने 20 दिसम्बर, 2011 को रहे सहजधारियों को उनके इस अधिकार से वंचित कर दिया था तथा इससे 2011 में हुआ शिरोमणी कमेटी का चुनाव भी कानून की नज़र में रद्द माना गया था तथा हाई कोर्ट गई थी, जहां सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेशों के इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और रद्द नहीं किया तथा इस संसदीय संशोधन के कारण शिरोमणी कमेटी की अपील को खारिज करते हुए सहजधारी सिक्ख पार्टी को इस संशोधन अधिनियम के कानूनी महत्त्व को चुनौती देने की विशेष छूट दी गई थी।
वहीं डॉ.रानू ने यह भी कहा कि लोक सभा चुनाव में इस मुद्दे को जनता में उठाया जाएगा। अगर शिरोमणि कमेटी में वोट नहीं तो अकालियों को कोई सपोर्ट नहीं। जब आम चुनाव होते हैं तो यह लोग दीप सिद्धू या मूसेवाले जैसों को नौजवानों को बहलाने के लिए शहीद तक कह देते हैं। परन्तु गुरुद्वारा चुनाव में इन्हें गैर पथिक कहते हैं और सिख ही नहीं मानते। किसान अंदोलन में बॉर्डर पर शहीद हुए शुभकरण जैसे नौजवान जिसकी अंतिम अरदास गुरू में ग्रंथ साहिब के सामने कहा गया कि वह तो सिख ही नहीं था। डॉ रानू ने कहा के भाजपा में गए सिख सिर्फ अपने निजी लाभ तक सिमित हैं कोई पंजाब एवं सिखों की बात सही तरीके से पेश नहीं कर रहा।