दोआबा न्यूज़लाईन (देश) काजल तिवारी
देश: सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को भविष्य में उदाहरण के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। जहां अदालत ने पीड़िता के स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी है। इससे पहले कई भारतीय अदालतों ने ऐसे मामलों में गर्भपात की इजाजत देने से इनकार कर दिया था। आइए बताते है क्या है पूरा मामला जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट के इस फैंसले की तरीफ की जा रही है।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसी साल एक 11 साल की बलात्कार पीड़िता को गर्भपात की इजाजत नहीं दी थी। पीड़िता 32 हफ्ते की गर्भवती थी उसने कोर्ट में दलील दी कि वह इसलिए गर्भपात करवाना चाहती है क्योंकि वह बच्चा उसके साथ हुए अपराध की हमेशा याद दिलाता रहेगा दूसरी तरफ कोर्ट ने दलील दी कि एक पूरी तरह से विकसित भ्रूण के पास भी जीने का अधिकार है।
जिसके बाद हाई कोर्ट ने सविधान अनुच्छेद 142 के तहत कुछ विशेष पक्तिया मिली हुई हैं। यह अनुच्छेद SC को उसके सामने लंबित किसी भी मामले में पूर्ण न्याय के लिए जरुरी डिक्री या आदेश पारित करने की शक्ति देता है। ऐसी डिक्री और आदेश समूचे भारत पर लागू होते हैं। यह न्यायिक हस्तछेप का यह महत्वपूर्ण तरीका है। सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत मौजूद कानूनों और नियमो से परे जाकर न्याय सुनिक्षित कर सकता है। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 30 सप्ताह के गर्भपात गिराने की अनुमति देने के लिए अनुच्छेद 142 का सहारा लिया यह अनुच्छेद SC को उसके समक्ष लंबित किसी मामले या मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक कोई भी डिक्री या आदेश पारित करने का अधिकार देता है।
इसके साथ ही बता दें की सुप्रीम कोर्ट ने कहा की पीड़िता के गर्भ ऑपरेशन का सारा खर्चा सरकार उठाएगी। अगर गर्भपात के बाद पीड़िता को किसी तरह की मेडिकल सहायता की जरूरत पड़ती है तो मुहैया करवाई जाएगी।