दोआबा न्यूज़लाईन (सम्पादकीय)
हर बार की तरह इस बार भी नई दिल्ली में हुई गणतंत्र दिवस की परेड में भारत ने अपनी जंगी ताकत का प्रदर्शन किया। मिसाइलें, लड़ाकू विमान, अत्याधुनिक आग्नेयास्त्र, सेना का ऐसा हर हथियार, जो हमें देश की…
ह र बार की तरह इस बार भी नई दिल्ली में हुई गणतंत्र दिवस की परेड में भारत ने अपनी जंगी ताकत का प्रदर्शन किया। मिसाइलें, लड़ाकू विमान, अत्याधुनिक आग्नेयास्त्र, सेना का ऐसा हर हथियार, जो हमें देश की सुरक्षा को लेकर आश्वस्त करता है, इस परेड में शामिल था। मगर सेना के पास सिर्फ इतना ही नहीं है, भारतीय सेना के पास एक और ऐसी ताकत आ चुकी है, जो आश्वस्त भी करती है और गौरवान्वित भी। यह है नारी शक्ति। शुक्रवार की परेड में तीनों सेनाओं और अन्य सुरक्षा बलों की सभी टुकड़ियों का नेतृत्व महिलाओं ने किया। यहां तक कि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन की झांकी का नेतृत्व भी वैज्ञानिक सुनीता जैन ने किया। परेड और झांकियों में यह दिखाने की कोशिश की गई कि महिलाएं सुरक्षा बलों में कितने अलग-अलग तरह की भूमिकाएं निभा रही हैं। परेड में जिस टुकड़ी ने सबका ध्यान खींचा, वह थी सेना के एक इंजीनियरिंग कोर बांबे सैपर्स की टुकड़ी। भारतीय सेना की इस सबसे प्रतिष्ठित कोर की टुकड़ी में सभी पुरुष थे, लेकिन उनका नेतृत्व एक महिला दिव्या त्यागी कर रही थीं। राज्यों की झांकियों और परंपरागत नृत्य मंडलियों में महिलाएं ही आगे थीं, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा सुरक्षा बलों में महिलाओं की भूमिका को लेकर ही हुई।
यह सिर्फ भारतीय रक्षा बलों में महिलाओं की सक्रियता का मामला नहीं है, बल्कि यह भी बताता है कि समाज अपने बंधन तोड़कर कितना आगे बढ़ चुका है। ब्रिटिश सरकार ने जब भारत में सेना बनाई थी, तब उसमें महिलाओं को एक ही भूमिका दी जाती थी- नर्स की भूमिका। महिलाएं घायल सैनिकों के इलाज से आगे जाकर भी कुछ कर सकती हैं, ऐसा सोचा ही नहीं गया था। लेकिन ठीक उसी समय जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भारत के बाहर निर्वासित आजाद हिंद फौज का गठन किया, तब उन्होंने रानी झांसी ब्रिगेड बनाई थी, जिसमें सिर्फ महिलाएं ही थीं। आजादी के बाद भारत ने इस परंपरा को धीरे-धीरे ही सही लगातार आगे बढ़ाया। लंबे समय तक सोच यही रही कि युद्ध के मोर्चे पर जाकर लड़ाई लड़ने का काम, यानी कॉम्बैट रोल महिलाओं को नहीं सौंपा जाना चाहिए, पर धीरे-धीरे इस आग्रह को भी खत्म कर दिया गया। अब अगर हम 2018 के आंकड़ों को देखें, तो उस समय भारतीय वायुसेना में 13 फीसदी से भी ज्यादा महिलाएं ऑफिसर के पद पर थीं। बाकी दोनों सेनाओं में यह प्रतिशत इतना ज्यादा नहीं है, लेकिन तेजी से सुधर रहा है। सोच और आग्रह के स्तर पर जो सबसे बड़ी बाधा थी, अब वह पूरी तरह खत्म हो चुकी है।
परेड में शामिल ये टुकड़ियां राष्ट्रपति को सलामी देती हैं। यानी सिर्फ सलामी देने वाली ही महिलाएं नहीं थीं, बल्कि वे एक महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को सलामी दे रही थीं। यह बताता है कि सिर्फ सैनिकों, अफसरों और पेशेवरों के मामले में ही महिलाएं आगे नहीं हैं, सत्ता तंत्र चलाने में भी वे बहुत आगे पहंुच चुकी हैं। पिछले दिनों जिस तरह से भारत ने महिला आरक्षण विधेयक संसद के दोनों सत्रों में पास किया, उससे यह लगभग तय है कि आने वाले समय में राजनीति में महिलाएं ज्यादा बड़ी भूमिका निभाने जा रही हैं। इसी तरह की कोशिश हमें अन्य क्षेत्रों में भी करनी होगी। यह सच है कि महिलाएं हर क्षेत्र में आगे आई हैं, पर अभी जो स्थिति है, उससे बहुत संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता। महिलाओं के लिए अभी अनेक ऐसे मोर्चे हैं, जहां उनकी मजबूत मौजूदगी की दरकार है।