दोआबा न्यूज़लाईन
धर्म: (सपना ठाकुर) रंगों का त्योहार होली पूरे भारत वर्ष में बड़ी ही श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है। 2 दिन तक चलने वाला यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा से शुरू होता है। जिसके पहले दिन होलिका दहन किया जाता है और दूसरे दिन रंगों की होली खेली जाती है। रंगों का यह त्योहार इस दिन परायों को भी अपना बना लेता है। लोग होली के दिन एक-दूसरे को रंग लगाकर बधाई देते हैं और खुशियों भरे इस त्योहार को हर्षोल्लास से मनाते हैं।
होली के त्योहार का युवाओं और खासतौर पर बच्चों को बड़ा बेसब्री से इंतजार रहता है। इस दिन महिलाएं घरों में तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन बनाती हैं। लोग इस दिन अपने गली मोहल्ले के लोगों, दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ मिलकर होली खेलते हैं और एक दूसरे को खूब रंग गुलाल लगाते हैं। सब मिलकर एक साथ होली के इस त्योहार को मनाते हैं और घर पर बनाए गए व्यंजनों का मिलकर लुत्फ उठाते हैं। बच्चे और युवा इस दिन रंगों के साथ-साथ पानी की होली का मजा लेते हैं।
रंगों से सजे बाजार, बच्चों के लिए कार्टून कैरेक्टर और सुपर हीरोस वाली पिचकारियां बनी आकर्षण का केंद्र
होली के त्योहार को लेकर बाजारों में काफी पहले से रौनकें लगी हुई हैं। बाजारों में कई तरह के रंग आए हुए हैं। आजकल लोगों की पसंद ऑर्गेनिक रंग बन रहे हैं जो स्किन के लिए भी किसी तरह से नुकसानदायक नहीं होते हैं। बच्चे और युवा की होली की शॉपिंग जोरों-शोरों से बाजारों से चल रही है। बच्चे और युवा बाजारों में दुकानों से खूबसूरत और आकर्षक डिज़ाइन वाली पिचकारियां, रंग और गुलाल की खरीदारी कर रहे हैं।
होली के त्योहार से जुडी हैं कई पौराणिक मान्यताएं
देश भर में ब्रज की होली मशहूर है। नंद की नगरी में होली का त्योहार पूरे हर्षोल्लास से मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रीकृष्ण और राधा रानी की अठखेलियों से होली खेलने की शुरुआत हुई थी। होली को लेकर कई पौराणिक कथाएं भी जुडी हुई हैं। उनमें से एक कथा जो हम बचपन से सुनते आ रहे हैं वो है हिरण्यकश्य, होलिका और प्रह्लाद की कहानी। होलिका दहन क्यों किया जाता है इसके पीछे भी एक पौराणिक मान्यता है। पौराणिक कथा के अनुसार पुराने समय में हिरण्यकश्यप नाम का राक्षश था जो भगवान विष्णु से नफरत करता था. हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था प्रह्लाद जो भगवान विष्णु का परम भक्त था और भगवान की पूजा में हमेशा लीन रहता है, जिससे देखकर हिरण्यकश्यप क्रोधित होता था। एक दिन बालक प्रह्लाद की भक्ति देखकर हिरण्यकश्यप ने उसे मारने का निर्णय लिया। हिरण्यकश्यप ने हर वो कोशिश की जिससे वह प्रह्लाद को मार सके लेकिन प्रह्लाद हर बार बच जाता था।
अपने बेटे को मारने के लिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की मदद ली,जिसको यह वरदान था कि अग्नि उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। हिरण्यकश्यप ने होलिका से प्रह्लाद को गोद में लेकर आग की लपटों में बैठने के लिए कहा और होलिका ने बिल्कुल ऐसा ही किया। होलिका नन्हे प्रह्लाद को गोद में लेकर आग की चिता पर बैठ गई। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से इस आग में भी उनका भक्त प्रह्लाद बच गया और होलिका जलकर भस्म हो गई हो गई। इसके बाद से ही बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन किया जाने लगा और हर साल होली का त्योहार मनाया जाने लगा।