शिमला: IGMC में एक बेटे ने अपने मृत पिता की दान की ऑंखें, फेफड़ों की बीमारी से थे ग्रसित

दोआबा न्यूज़लाईन

शिमला: हिमाचल की राजधानी शिमला के IGMC अस्पताल में एक अद्भुत नजारा देखने को मिला। जहां बेटे ने पिता की मृत्यु के बाद एक अहम फैसला लेते हुए उनकी आंखें दान कर दीं। उसके इस बहुमूल्य योगदान से अब उसके पिता की आंखों से दो लोगों के जीवन में रौशनी आ सकेगी। हालांकि उनके इस फैसले से कुछ ग्रामीणों ने नाराजगी जताई है।

जानकारी के अनुसार कुल्लू निवासी अशोक कुमार ने बताया कि उनके पिता लंबे समय से फेफड़ों के रोग से ग्रसित थे। जिनका लंबे समय से इलाज चल रहा है। उन्हें कुछ दिन पहले सीटीवीएस विभाग में भर्ती कराया गया, जहां 25 सितंबर को उनके पिता ने अंतिम सांस ली। जहां डॉक्टरों ने उन्हें नेत्रदान के बारे में जानकारी दी, तो उन्होंने बिना आनाकानी किए पिता की आंखें दान करने के लिए हामी भर दी। उन्होंने बताया कि उनके पिता समाज सेवा में हमेशा तत्पर रहते थे, ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता अभियान के तहत लोगों को नुक्कड़ नाटक के जरिए शिक्षा का महत्व बताते थे।

वहीं उन्होंने लोगों से अपील करते हुए कहा कि नेत्रदान हर कोई व्यक्ति कर सकता है, यह काम दूसरों की जिंदगी में उजाला ला सकता है। मरने के बाद नेत्रदान जरूर करना चाहिए, ताकि जरूरतमंदों को इसका फायदा मिल सके। अशोक कुमार ने बताया कि पिता के नेत्रदान करने की बात जब गांव में फैली, तो इस कार्य का कई लोगों विरोध किया, परिवार को कोसना शुरू कर दिया। लेकिन अधिकतर लोगों ने समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि लोगों में यह भ्रांति है कि मरने के बाद अगर नेत्रदान किए जाएं तो आत्मा को शांति नहीं मिलती, इसी अंध विश्वास के चलते लोग नेत्रदान से पीछे हट जाते हैं। उन्होंने कहा कि समाज में इसी भ्रम को दूर करने की जरूरत है।

वहीं IGMC सोटो के ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेटर नरेश ने बताया कि IGMC में विभिन्न बीमारियों से ग्रसित 3-4 मरीजों की रोजाना मौत होती है। लेकिन लोग नेत्रदान व अंगदान के बारे में बात करने से भी कतराते हैं । बेहद कम लोग ऐसे हैं, जो समाज के प्रति जिम्मेदारी समझते हुए इस पुनीत कार्य के लिए आगे आते हैं।

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