बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है दशहरा पर्व, देशभर में उत्साह से मनाया जा रहा है आज यह पर्व

दोआबा न्यूज़लाईन

धर्म: (सपना ठाकुर) बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है दशहरा पर्व। इसलिए इस दिन को ‘विजयादशमी’ के रुप में मनाया जाता है। भारत में दशहरा हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को धूमधाम के साथ मनाया जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार यह पर्व देवी दुर्गा द्व्रारा महिषासुर नामक राक्षस का वध करने की विजय का भी प्रतीक है। यह दिन दोनों कथाओं में बुराई के अंत और सच की जीत का संदेश देता है।

बता दें कि देश के हर हिस्से में दशहरे का त्योहार अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। उत्तर भारत में दशहरे वाले दिन रावण, मेघनाथ और कुभकरण के पुतले जलाने की परंपरा है जो बुराई के विनाश का प्रतीक मानी जाती है। इससे नौ दिन पहले रामलीला का आयोजन भी किया जाता है। जिसमे भगवान राम के जीवन और रावण पर उनकी विजय की कथा का मंचन किया जाता है और नए कार्य की शुरुआत के लिए इस दिन को मनाया जाता है। दशहरा केवल धार्मिक पर्व नहीं है बल्कि समाज को एक महत्वपूर्ण संदेश देने वाला पर्व माना जाता है।

पश्चिम बंगाल में दशहरा को दुर्गा पूजा के समापन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन देवी दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन होता है और लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में दशहरा को शस्त्र पूजा के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने अस्त्र-शस्त्र और औजारों की पूजा करते हैं, और नए कार्यों की शुरुआत के लिए ईसको शुभ दिन मानते हैं। समाज के लिए संदेश दशहरा केवल धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि समाज को एक महत्वपूर्ण संदेश देने वाला उत्सव भी है। यह हमें सिखाता है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ और बुराइयाँ हमारे सामने क्यों न हों, हमें सच्चाई, न्याय और नैतिकता के मार्ग पर ही चलना चाहिए। बुराई का अंत अवश्य होता है और अच्छाई की जीत सुनिश्चित होती है।

यह पर्व हमें याद दिलाता है कि हमें अपने जीवन में नैतिक मूल्यों का पालन करना चाहिए और सदैव सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए। दशहरा केवल धार्मिक आस्था का पर्व नहीं, बल्कि नैतिकता और सच्चाई के प्रति समर्पण का प्रतीक भी है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में कितनी भी बाधाएं क्यों न आएं, हमें सही रास्ते पर चलते रहना चाहिए। बुराई का अंत और अच्छाई की जीत निश्चित होती है और यही दशहरे का मुख्य संदेश है। इस दिन हर जगह पंडाल में रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुतले जलाए जाते हैं। इस दिन मेलों का भी आयोजन किया जाता है।

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